woke culture kya hai और हमारे देश का युवा कैसे बर्बाद हो रहा है इसकी वजह से? पिछले कुछ वर्षों से क्यों वोक कल्चर चर्चा का विषय बना हुआ है? न्यूज़ चैनल हो या सोशल मीडिया, हर जगह इसी की बात हो रही है। पहले इसकी बातें केवल अमेरिका तक ही सीमित थीं लेकिन अब इसकी बातें भारत में भी होने लगी हैं। तो आखिर ऐसा क्या है ये?
woke culture kya hai?
वोक कल्चर समझने के लिए, हमें सबसे पहले वोक शब्द को समझना होगा। शब्दकोश के अनुसार, woke (वोक) शब्द अंग्रेजी के wake (वेक) शब्द का भूतकालिक रूप है जिसका अर्थ होता है – जागा, उठा। यह क्रियात्मक रूप है लेकिन इसका प्रयोग विशेषण के तौर पर भी होता है जिसका अर्थ होता है – जागृत, ऐसा व्यक्ति जिसको ज्ञान की प्राप्ति हो गई है, जो जागरण की स्थिति में पहुँच चुका है। लेकिन समय और परिस्थितियों के अनुसार इसके अर्थ में थोड़ा बहुत बदलाव हुआ जिससे इसका अर्थ बदल करके कुछ ऐसा हो गया है – ऐसा व्यक्ति जो सामाजिक अन्याय एवं भेदभाव के प्रति सजग हो। अच्छाई एवं भलाई का प्रतीक माना जाने वाला शब्द आज एक गाली बन कर रह गया है। आज वोक होने का मतलब है – नस्ल, जेंडर और सेक्सुअल ओरिएंटेशन को लेकर पागलपन।
वोक शब्द का अर्थ जानने के बाद अब आपको सम्भवतः यह समझ में आ गया होगा कि woke culture kya hai, जी हाँ, वोक कल्चर लोगों का वो पागलपन है जिसमें लोग अपने लिंग, अपने जाति, अपने सेक्सुअल ओरिएंटेशन (अर्थात आप किसके प्रति आकर्षित हैं और आप किसके साथ यौन सम्बन्ध बनाना चाहते हैं, बिना इस बात की परवाह किये कि वो लड़का है, लड़की है या ट्रांस है) के प्रति हाइपर ऐक्टिव (कुछ ज्यादा ही सक्रिय) हैं। उन्हें धर्म से, रीति-रिवाज से, परिवार से, शादी से, बच्चों से कोई मतलब नहीं है। उन्हें हर एक चीज पर सवाल उठाना है चाहे वह धार्मिक व्यवस्था हो, पारिवारिक व्यवस्था हो, सामाजिक व्यवस्था हो या फिर कुछ भी हो। उनका कहना है “मेरी मर्जी, इससे आपको क्या?” जो उन्हें सही लगता है वही सही है, वही अन्तिम सत्य है उन्हें आपके दृष्टिकोण की कुछ नहीं पड़ी है, उन्हें जानना ही नहीं कि आप क्या सोचते हैं।
वोक कल्चर की शुरुआत कैसे हुई?
woke culture यानी कि जागृत संस्कृति की शुरुआत 1930 के आस-पास अश्वेत समुदायों द्वारा की गई थी। इस विचारधारा का मूल उद्देश्य अफ्रीकी अमेरिकियों अर्थात अश्वेत अमेरिकी लोगों को जाकरूक करना था। उस नस्लीय भेदभाव के प्रति जाकरूक करना था जो उनके साथ न केवल सामाजिक स्तर पर हो रहा था बल्कि राजनीतिक स्तर पर भी हो रहा था। उस समय जागृत संस्कृति का सिद्धान्त अश्वेतों के साथ हो रहे अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाना था जो कि सही भी था।
बदलते समय के साथ वोक कल्चर की सीमाएँ भी विस्तृत होती चली गईं। जहाँ पहले यह केवल अश्वेत लोगों तक सीमित था, वहीं अब इसका प्रयोग उन सभी लोगों के द्वारा किया जाने लगा जो नस्लीय भेदभाव को झेल रहे थें, जो लिंगभेद को झेल रहे थें। LGBTQ लोगों के अधिकारों की बात उठने लगी। लोग अपने-अपने अधिकारों के प्रति सजग होने लगे। अपने प्रति होने वाले अन्याय, भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने लगे, चाहे वो श्वेत हो या अश्वेत। यह तब तक सही था जब तक लोग इसका प्रयोग अपने अधिकारों के लिए कर रहे थें। यह विचारधारा उस समय दूषित हो गई जब लोगों ने इसका दुरूपयोग करना शुरू कर दिया।
इसे भी पढ़ें – वोक कलचर का नमूना “बवाल”
Woke culture in Europe | यूरोप में वोक कल्चर का प्रभाव
यूरोप में नस्ल, जेंडर और सेक्सुअल ओरिएंटेशन को लेकर पागलपन कुछ इस तरह बढ़ा कि इसने सारी हदें पार कर दीं। जलवायु कार्यकर्ताओं, महिला कार्यकर्ताओं, समलैंगिकों के अधिकारों की माँग करने वाले कार्यकर्ताओं ने इस विचारधारा को हवा दी और कहीं न कहीं इसका दुरूपयोग भी किया जिसका प्रभाव आज हम देख रहे हैं। उदाहरण के लिए –
- ब्रिटिश सिनेमा की जानी मानी नायिका “डेम एम्मा थॉम्पसन”, 2019 में, जलवायु परिवर्तन पर चिन्ता व्यक्त करते हुए लंदन में प्रदर्शनकारियों के साथ आन्दोलन में शामिल हुईं थीं। इस विरोध प्रदर्शन में आंदोलनकारियों ने न केवल लंदन की मुख्य सड़कों और पुलों को अवरुद्ध किया था बल्कि एम्बुलेंस तक को रोक दिया था।
- लिंग पहचान को लेकर अभियान चलाना कि लिंग का निर्धारण शारीरिक तौर पर नहीं बल्कि मानसिक तौर पर किया जाना चाहिए और उसे कानूनी मान्यता प्रदान की जानी चाहिए। परिणामस्वरूप महिला प्रतिस्पर्धा में ट्रांस लोगों ने भर-भर के ओलंपिक पदक जीता और महिलाओं का हक छीना।
- यू के में समलैंगिकता को बढ़ावा दिया गया। विद्यालयों में नाबालिक बच्चों को जेंडर चुनने के बारे में बताया जाने लगा। उन्हें बताया जाने लगा कि जेंडर दो या तीन नहीं होते हैं, बल्कि 100 से अधिक होते हैं और आप जो चाहें वो जेंडर चुन सकते हैं। बच्चे इस दुविधा में हार्मोन ट्रीटमेंट करवा रहे हैं, लड़कियाँ मासिक धर्म शुरू होने से पहले प्यूबर्टी ब्लॉकर ले रही हैं। वे मेनोपॉज की अवस्था में समय से पहले ही पहुँच जा रही हैं। ऐसे ड्रग के इस्तेमाल से बच्चों की सेक्सुअल डिज़ायर खत्म हो जाती है और वो ये समझ ही नहीं पाते हैं कि वो हैं क्या? अन्ततः बच्चे गे, लेस्बियन, होमोसेक्सुअल यही सब बन के रह जाते हैं।
- 2013 में समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से मान्यता प्रदान की गई जिसके परिणामस्वरुप आज ये स्थिति है कि वहाँ युवाओं की कमी हो गई है। लोग परिवार नहीं बसाना चाहते, केवल लिव इन में रहना चाहते हैं। सरकार नागरिकों को बच्चा पैदा करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है ताकि देश में युवा शक्ति बढ़ सके।
woke culture in India | भारत में वोक कल्चर का प्रभाव
पश्चिमी सभ्यता को अपनाने में भारत की युवा पीढ़ी कभी पीछे नहीं रही है और परिणामस्वरुप आज की युवा लड़कियाँ ये कह रहीं हैं – “आएम गोना वेयर व्हाट आई वन्ना वेयर, भारतीय सभ्यता गई तेल लेने।”
- मन्दिरों में अश्लील कपड़े पहन कर जाना, उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करना।
- रील बनाने के लिए या फिर अपने आप को कूल दिखाने के लिए, कपड़े की दुकान में दुकानदार के सामने कपड़े बदलना।
- लड़कियाँ अपने पति को बेचने की बात कर रहीं हैं और बड़े शौक से कह रहीं हैं अगर तुम लोगों बुरा लग रहा है तो जाओ मेरे खिलाफ FIR कराओ।
- आजकल के लड़के-लड़कियों को एक पार्टनर पसन्द नहीं आ रहा है। उन्हें एक्सप्लोर करना है। नए-नए लोगों के साथ सम्बन्ध बनाना है। कुछ लड़कियाँ तो अलग ही लेवल की हैं, लड़कों के साथ रिलेशनशिप अच्छे नहीं है तो लड़कियों के साथ सेक्सुअल रिलेशनशिप बनाना है।
देर रात तक पार्टी करना, नाइट क्लब में दारु पीना, दोपहर में उठना, मांस खाना, शाक सब्जी खाने वालों को घास-फूस खाने वाला कहना, शादी नहीं करना, परिवार नहीं चाहिए, बच्चे पैदा नहीं करना, लिव इन में रहना है। ये सब आज भारतीय समाज में देखने को मिल रहा है। यदि कोई समझाने जाए तो सीधा जवाब मिलता है – इससे आपको क्या? मेरी जिन्दगी, मेरी मर्जी।
आज लोग दिखावे की जिन्दगी यानी कि सोशल मीडिया की जिन्दगी जी रहें हैं। नाम और शोहरत के चक्कर में लोगों के कपड़े एक-एक करके शरीर से उतरते जा रहे हैं। युवा पीढ़ी बेशर्म बनती जा रही है। यह woke culture वामपंथियों द्वारा चलाया गया एक ऐसा कल्चर है जिससे पूरा यूरोप बर्बाद हुआ और अब यह भारत में भी अपने पाँव पसार रहा है और भारतीयों को उनके जड़ों से दूर कर रहा है।
It’s very serious thing…..
Gen alpha k baccho k liye badi musibat
Serious to hai…