दीपावली: एक व्यंग्यात्मक दृष्टिकोण

दीपावली की तैयारी

लो भाई! आ गई दीपावली, जिस दिन के लिए महीने भर से घर में उथल-पुथल मची हुई थी वो दिन आ गया। दीपावली के ठीक एक महीने पहले से ही हर घर में सफाई अभियान शुरु हो जाता है। ऐसा लगता है जैसे घर के कोने-कोने में छिपे धूल कणों ने कोई अपराध कर दिया हो और अब उन्हें दण्ड मिलने जा रहा हो। धूल के कणों को दण्डित करने के लिए घर के सभी सदस्य जुट जाते हैं, बच्चे से लेकर बड़े तक। सभी अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार अस्त्र- शस्त्र धारण कर लेते हैं जिनमें मुख्य रुप से झाड़ू, पोंछा और धूल साफ करने वाला कपड़ा होता है। धूलों को कितना कष्ट होता होगा! नहीं?

धूलों को छोड़िए, उन युवक युवतियों की सोचिए जिन्होंने अभी-अभी अपने  प्रेम की यात्रा शुरु की थी। पूरी साफ-सफाई इसी डर में हो जाती है कि कहीं कोई कागज का टुकड़ा किसी के हाथ न लग जाए। खैर, ये तो अपने-आप को किसी तरह से बचा लेते हैं लेकिन घर के पुराने सामानों का क्या? जिनके ऊपर सबसे पहले निशाना साधा जाता है। वो पुरानी अलमारी, जो साल भर से किसी कोने में धूल खा रही थी और अचानक से सबके नज़र में आ जाती है। “निकालो सब फालतू का सामान, सब बेकार में पड़ा हुआ है, हटाओ, ले जाओ सब कबाड़ी को दे दो।” पापा की कुछ ऐसी ही आवाज़ आती है। फिर हमें, वो सारी चीज़े निकालनी पड़ती हैं जिनको हमने साल भर से संजो कर रखा था। उन सामानों को भी लगता होगा, “चलो भाई, कैद से आज़ादी तो मिली।”

सामानों को तो फुर्सत मिल जाती है लेकिन अभी हमारा काम समाप्त नहीं हुआ होता है। अब बारी आती है पुताई करने की। हर बार की तरह पेंटर भाई साहब खाली होते नहीं हैं तो हम लोगों को ही पेंटर बाबू बनना पड़ता है। दीवारें भी सोचती होंगी, “कभी तो समय से असली पेंटर बुला लिया करो। अपनी इज़्ज़त की ना सही, मेरे ही इज़्ज़त की परवाह कर लिया करो।”

इन सब में सबसे ज्यादा थकाई, घर की महिलाओं की होती है जिनका काम दीपावली आने के बाद भी पूरा नहीं हुआ होता है। लक्ष्मी जी की पूजा करने के लिए, स्वयं घर की लक्ष्मी को ही सारी तैयारियाँ करनी पड़ती हैं क्योंकि घर के पुरुष लक्ष्मी जी को लाने के लिए बाहर गये हुए होते हैं। लक्ष्मी जी आएँगी तभी तो घर में खुशियाँ आएँगी।

दीपावली: रोशनी का त्योहार या पटाखों का महोत्सव?

दीपावली या दीवाली आप जो भी कह लें, यह भारत का सबसे प्रमुख त्योहार है और सभी लोग इसे बड़े धूम-धाम से मनाते हैं। इस धूम-धाम के चक्कर में कुछ लोग हद से ज्यादा ही आतिशबाजी करते हैं और ये भूल जाते हैं कि दीपावली रोशनी का त्योहार है, पूजा-पाठ का त्योहार है न कि पटाखों का महोत्सव। और यदि इस मुद्दे पर कोई व्यक्ति कुछ कह दे तो पूरे सोशल मीडिया पर उसकी टाँग खींची जाती है और उसका मज़ाक उड़ाया जाता है। दीपावली का मतलब केवल पटाखा होता है ऐसा तो छोटे बच्चे समझते हैं, आप क्या हैं?

दीपावली का असली मतलब

दीपावली का त्योहार केवल रोशनी और पटाखों का त्योहार नहीं होता है, बल्कि यह तो एकता, प्रेम और खुशियों का प्रतीक होता है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि अंधकार चाहे कितना भी गहरा हो, एक छोटा सा दीपक भी उसे दूर कर सकता है।

आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!

2 thoughts on “दीपावली: एक व्यंग्यात्मक दृष्टिकोण”

  1. लक्ष्मी जी की पूजा करने के लिए, स्वयं घर की लक्ष्मी को ही सारी तैयारियाँ करनी पड़ती हैं
    Ye line ekdam sahi kaha….

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