भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाले बाबा गोरखनाथ के पावन धरती पे जन्में हमारे मित्र, उमेश जी की उम्र लगभग तीस वर्ष होने वाली थी लेकिन विवाह हेतू उनको कोई भी कन्या पसन्द नहीं आ रही थी। सगे-सम्बन्धियों की भीड़ लगी रहती थी द्वार पे और भईया-भाभी ने भी कई जगह बात चला रखी थी लेकिन उमेश जी के मन को कोई भाता ही नहीं था। सम्भवतः आप के मन में ऐसे विचार आ रहे होंगे कि कोई तो अवश्य होगा उनके जीवन में जिसके लिए वो सबको नापसन्द कर रहे हैं किन्तु ऐसा कुछ भी नहीं था। बात बस ऐसी थी कि कोई उम्र में बहुत अधिक छोटी निकल जाती थी तो कोई रूप-रंग में खोटी। कोई ऐसा नहीं मिल रहा था जिसे वो एक बार देखते ही अपना तन-मन-धन सब दे बैठें। चूँकि वो अपने घर में सबसे छोटे और अपने भईया-भाभी के दुलारे थें इसलिए उन पर कभी किसी ने विवाह के लिए कोई दबाव नहीं बनाया। माता-पिता के देहावसान के पश्चात उनके भईया और भाभी ही उनके लिए माता-पिता के समान थें। अब उमेश जी के विवाह का उत्तरदायित्व इन्हीं के काँधों पे था। भईया-भाभी को इस बात की चिन्ता लगी रहती थी कि लड़के की शादी की उम्र हो चली है, अगर सही उम्र में शादी ना हो तो राम जानें वैवाहिक जीवन कैसा होगा? ये अधिकतर देखा गया है कि जिन लड़के-लड़कियों ने शादी की उम्र निकल जाने के बाद शादी की है उन लोगों का जीवन सुखमय नहीं रहा है क्योंकि उनके बीच कभी वो सामन्जस्य स्थापित ही नहीं हो पाया जो एक छोटी उम्र या यूँ कहें सही उम्र में बन जाता है। जिसमें पत्नी स्वयं को अपने से एक उच्च व्यक्तित्व के समक्ष समर्पित कर देती है और उसकी प्रभुता स्वीकार करती है। अपना सर्वस्व उस पर न्योछावर करके उसकी हर आज्ञा को शिरोधार्य करती है। वहीं दूसरी ओर पति, एक ऐसे शक्तिपुंज को अपने हृदय में स्थान देता है जो उसके लिए देव तुल्य होता है जिसकी रक्षा में वो पूरे विश्व से लड़ने को तत्पर रहता है। वो एक ऐसी मूरत में स्वयं को विलीन कर लेता है जो उसकी अपूर्णता को पूर्णता में परिवर्तित कर देती है और उसके मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है। सही उम्र में विवाह होने से पति-पत्नी के बीच एक आत्मिक बन्धन बँध जाता है जो कम से कम किसी कागज़ के पन्ने से तो नहीं टूटता है और यही उम्र बीत जाने के बाद होने से ये केवल एक मात्र दैहिक बन्धन रह जाता है जिसमें कभी उनका स्वाभिमान आड़े आता है तो कभी उनकी स्वतन्त्रता।
भगवान की दया से उमेश जी एक प्रतिष्ठित कम्पनी में, एक अच्छे पद पर कार्यरत थें और पुरखों की सम्पत्ति में भी कोई कमी नहीं थी। बीघों में खेती होती थी, खलिहानों में अनाज की कोई कमी नहीं थी। घर-परिवार में कुछ लोग सरकारी वेतन भी उठा रहे थें। कुल मिलाकर धन-धान्य से सम्पन्न एवं प्रतिष्ठित परिवार था। अब ऐसे परिवार में कौन अपनी पुत्री नहीं ब्याहना चाहेगा? हर एक पिता की यही लालसा होती है कि मेरी बेटी जहाँ जाये रानी बन कर रहे। कुछ ऐसी ही लालसा लिये एक सज्जन व्यक्ति उमेश जी का हाथ अपनी पुत्री के लिए माँगना चाहते थें जो गाँव में तो आयें किन्तु संकोचवश द्वार तक न आ सकें और उल्टे पाँव लौट गयें। आस-पड़ोस के अनुसार, उन्हें संकोच इस बात की थी कि ये लोग दहेज बहुत ज्यादा माँगेंगे और उनका कहना था – “यदि मेरा सामर्थ्य उतना न हुआ तो मुझे अपना छोटा सा मुँह लेकर घर लौटना होगा।” ये अन्तर्द्वन्द्व कुछ दिनों तक यूँ ही चलता रहा, फिर एक दिन साहस करके ये उमेश जी के घर पहुँच ही गयें और अपना हृदय खोल कर रख दिया। इन्होंने जैसा सोचा था उसके ठीक विपरीत हुआ। उमेश जी के परिवार को एक रूपया भी दहेज में नहीं चाहिए था, लड़के ने लड़की को और लड़की ने लड़के को देखा और रिश्ते की बात पक्की हो गयी।
संयोग देखिए लड़की का नाम शिवांगी था जिसका उमेश जी के साथ गठबन्धन होना था। कितना सुन्दर मेल है! उमेश संग शिवांगी। उमेश अर्थात उमा के ईश, भगवान शिव एवं शिवांगी अर्थात शिव की अंगी, देवी पार्वती। वाह! अद्भुत! जब नामों का ही मेल इतना पवित्र है तो कल्पना कीजिए इन दोनों लोगों का मिलन कितना पवित्र होगा। साक्षात स्वर्ग में बनी हुई जोड़ी प्रतीत होती है। यदि कोई इस बात में विश्वास नहीं करता है कि जोड़ियाँ स्वर्ग में ही बनती है तो वो इस घटना को देखे। विवाह के लिए प्रस्ताव लाने वाला व्यक्ति एक बार लौट चुका था। यदि साथ किसी और का लिखा होता तो अब तक शिवांगी जी का विवाह कहीं न कहीं हो गया होता लेकिन ऐसा नहीं हुआ। घूमा-फिरा के भाग्य ने देवी पार्वती को उनके शिव से मिला ही दिया। ये मिलन इतना शुभ था कि इसका प्रभाव उमेश जी के जीवन में दिखने लगा था। आठ फरवरी को उमेश जी का जन्मदिन रहता है और इस वर्ष आठ फरवरी ऑफिस डेज़ में पड़ा था अर्थात आज उमेश जी का जन्मदिन भी है और उन्हें कार्यालय भी जाना है। आज तक हमारे टीम के किसी भी व्यक्ति का जन्मदिन ऑफिस डेज़ में नहीं पड़ा था ताकि उसका जन्मदिन कार्यालय में मनाया जा सके। अब तक टीम से सभी को केवल संदेशों में ही शुभकामनाएँ मिलती रही हैं लेकिन उमेश जी का भाग्य देखिए – इनका जन्मदिन संदेशों में नहीं अपितु यथार्थ में मनाया गया। पूरी टीम के समक्ष मनाया गया। विधिवत केक मँगाया गया, मोमबत्ती बुझायी गयी, तालियाँ बजी, सबने हैप्पी बर्थडे सॉन्ग गाया, हर्षोल्लास के साथ उमेश जी ने केक काटा, मैंने उन्हें पहला टुकड़ा खिलाया और कुछ उनके गाल पे भी लगाया और हार्दिक बधाईयाँ दी। कुल मिलाकर ये जन्मदिन उमेश जी के लिए एक यादगार बन गया। आपको बताते चलूँ कि हमारा ऑफिस डेज़ हाइब्रिड मॉडल के चलते दो ही दिनों का होता है बाकी के तीन दिन घर से काम करना होता है तो ये थोड़ा कठिन है कि उन दो दिनों में किसी का जन्मदिन आये ही। दिन महीनों की तरह बीतते गये और उमेश जी शादी के लिए कार्यालय से अवकाश लेकर अपने गाँव चले गये। छः मार्च अर्थात जिस दिन उनकी शादी होनी थी उस दिन कार्यालय में, सुबह नाश्ते में संयोगवश पूड़ी-सब्जी बनी थी। ये देखिए कि इसके पहले नाश्ते में कभी पूड़ी-सब्जी नहीं बनी थी कम से कम उस दिन तो नहीं जिस दिन हम लोगों का कार्यालय जाना होता है। ये देख मेरा हृदय प्रफुल्लित हो उठा कि आज उधर उमेश जी की शादी है और वहाँ ही नहीं अपितु यहाँ भी पूड़ी-सब्जी बँट रही है। इसे क्या कहेंगे? क्या ये संयोग नहीं है? इस संयोग में स्नेहल को एक चीज़ की कमी खल रही थी और वो था गुलाब जामुन। और मजे की बात देखिए कि स्नेहल के इच्छानुसार दोपहर के भोजन में उसकी भी कमी पूरी हो गयी, मिठाई में गुलाब जामुन ही था। उस दिन तो मजा ही आ गया। उमेश जी ने अपनी शादी में सभी को आमंत्रित किया था लेकिन सबका पहुँचना असम्भव था लेकिन प्रभु की माया देखिए शादी में ना पहुँचते हुए भी सबने उमेश जी के शादी के भोज का आनन्द उठाया। ये विवाह उस पावन अवसर के आस-पास हुआ जब स्वयं शिव जी और देवी पार्वती का विवाह होना था। आठ मार्च, महाशिवरात्रि से ठीक एक दिन पहले। मैं एक दिन इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि हमारे यहाँ विवाह रात्रि से भोर तक चलता है और सुबह विदाई होती है तो इस प्रकार सात मार्च को विदाई हुई और आठ मार्च को महाशिवरात्रि। अद्भुत! मैं तो इन दोनों लोग के संयोग को धरती लोक पर, साक्षात शिव जी और पार्वती जी का आगमन ही मानता हूँ और इस स्वरूप को कोटि-कोटि प्रणाम करता हूँ। राम जानें? भगवान जी स्वयं ही धरती पर आ गये हों विवाह करने के लिए। वैसे भी देवी पार्वती जी पृथ्वी लोक पर विचरण करने के लिए शिव जी से कहती ही रहती हैं। क्या पता इस बार कुछ इस तरीके से ही सही।
बहुत ही सुन्दर लेखनी, अजीत जी।
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